भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विश्वास / नवीन ठाकुर 'संधि'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

विश्वास करियै केकरा पर केनां घोॅर चलतै?
विश्वास करबै सब्भै पर घोॅर चलबेॅ करतै।
बेटा पुतहू तेॅ झूठोॅ रोॅ शिकार,
बेटी-दमाद केरोॅ भी छै वहेॅ विचार ;
हमरोॅ विचारोॅ सें पत्नी रोॅ विचार मिलतै,
विश्वास...

नाती, पोता पोती, नतनी सब्भैं खूबेॅ नोचै छै,
कलम,किताब आरो रोटी तांय नै पूरै छै ;
बेटा-बेटी मैट्रीक, आई.ए., बी.ए. में पढ़तै छै,
पत्नी अंगूठा छाप बिन वजह झंझट करतैं छै ;
हमरोॅ सब दुःख केनाकेॅ मिटतै?
विश्वास...

एक बेटा नेता छै दोसरोॅ गाड़ीवान,
तेसरोॅ बेटा खेलाड़ी,छै चौथोॅ पहलवान,
समाजें कहै छै, झगड़ाहा परिवार,
हम्में रूकी-रूकी केॅ ठोकैं छी आपनोॅ कपार।
कहै छै ‘‘संधि’’ परिवार बढ़ैलोॅ तेॅ के भोगतै?
विश्वास...