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विस्मृति / राजुला शाह
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बूँद की बड़ी-सी परछाईं
उस छाया में चिपके तिनके आर-पार
लड़खड़ाता भूरा दरवाजा
रुक गया सिरे पर
भूरे तने वाले
बरसते छाते से
कुछ लोग
तन गये
यहाँ वहाँ
लड़खड़ाते
उस दरवाजे के आसपास
बूँद पर फिसले
सँभले छाया पर
और टिक गये
मन ही मन.........