भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वीनस के प्रति / रणजीत
Kavita Kosh से
जब तुम न हँसती-बोलती हो तब मुझे एहसास होता है
कि वीनस तुम हो पत्थर की, नहीं पर यह हृदय हत्आश होता है
इतना ही मुझे काफी कि धरती पर तुम्हें मैं देख पाता हूँ
नहीं तो देवियों का घर सदा आकाश होता है।