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वे दिन / रंजना गुप्ता
Kavita Kosh से
सुरमई वो धूप वाले दिन गए
रँग भीगे बादलों के दिन गए
कर्ज से भी सूद महँगा हो गया
घोंसला चिड़िया का ख़ाली हो गया
तोतली बातों
भरे वे दिन गए
झुरमुटों के क़ैद थोड़ी चाँदनी
बाँसुरी में घुट रही है रागिनी
छन्द के गीतों भरे
वे दिन गए
सभ्यताएँ जँगली सब हो गईं
जन्म से पहले गलतियाँ हो गईं
जो दिलासे के बचे
थे दिन गए
रोटियों से चान्द सस्ता हो गया
हरिया बचपन में ही बूढ़ा हो गया
भूख की इस आँच में
जल तन गए
खोखले सन्दर्भ जीवन के रहे
खेत फिर इस साल बोए बिन रहे
धान की फ़सलों
भरे वे दिन गए