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शरद तो आया / अज्ञेय
Kavita Kosh से
हाँ, शरद आया
ऊपर खुली नीली झील-
तिरते बादलों के पाल।
हरे हरसिंगार।
तिनकों से ढले दो-चार
ओस-आँसू-कन।
खिली उजली धूप
नीचे सिहर आया ताल।
शरद तो आया :
मदिर आलोक फल लाया :
नहीं पर इस बार
दीखे हृदय-रंजन
युगल खंजन!