शादी वाली फिल्में / चंद्रभूषण
खुदा को हाज़िर-नाज़िर मानकर की गई शादियां
जल्द ही ख़ुदा को प्यारी होती हैं
और वे, जो की जाती हैं अग्नि को साक्षी मानकर,
कभी लाल चूनर को समिधा बनाती हुई
तो कभी इसके बगै़र ही
सत्वर गति से होती हैं अग्नि को समर्पित।
इसके अलावा भी होती हैं शादियां
गवाह जिनका दो दिलों के सिवाय
कोई और नहीं होता
मगर इससे भी सुनिश्चित नहीं होता
उनका दीर्घजीवन
एक कृपालु अमूर्तन की जगह वहां भी
बहुत जल्द एक शैतान आ विराजता है।
लालच, कुंठा और ईर्ष्या के महासागर में
एक-दूसरे से टकराती तैरती हैं शादियां
पर्त दर पर्त खालीपन के भंवर में
नाचते हुए घूमते हैं पर्त दर पर्त खालीपन
फिर भी मज़ा यह कि
शादी के वीडियो जैसी बंबइया फ़िल्में
हर बार हिट ही हुई जाती हैं।
क्यों न हों-- कहते हैं गुनीजन--
यही है हमारा सामूहिक अवचेतन, क्योंकि
सब-कुछ के बावजूद शादी ही तो है
मानव-सृष्टि की इकाई रचने का
अकेला वैध उपाय-
बाक़ी जो कुछ भी है,
लड़कपन का खेल है।
सत्य वचन
पर कुछ-कुछ वैसा ही, जैसे-
एटम बम ही है
विश्व को सर्वनाश से बचाने का
अकेला वैध उपाय
बाक़ी जो कुछ भी है,
कमज़ोरों की बकवास है।