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शानदार बाग़ीचा / मंगलेश डबराल
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फूल सबके लिए खिले हैं
हवा सबके लिए बहती है
सबको प्रिय है फूलों के बीच चलना रुकना दौड़ना
देर तक देखना फूलों के साथ हवा के खेल
मैं एक फूल तोड़कर सूंघता हूँ
और एक बादशाह की तस्वीर में बदल जाता हूँ
एक फूल मेरे पैर के नीचे आकर कुचल जाता है
तब मैं दिखता हूँ एक ग़रीब की सूरत
जिसे बादशाह के बाग़ीचे में टहलने की मनाही है
अनंत काल से ।
(रचनाकाल: 1996)