भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शेर-11 / असर लखनवी
Kavita Kosh से
(1)
दिल को बर्बाद किये जाती है,गम बदस्तूर1 किये जाती है,
मर चुकीं सारी उम्मीदे, आरजू है कि जिये जाती है।
(2)
देखो न आंखें भरकर किसी के तरफ कभी,
तुमको खबर नहीं जो तुम्हारी नजर में हैं।
(3)
न जाने किधर जा रही है यह दुनिया,
किसी का यहां कोई हमदम नहीं है।
(4)
न जाने बात क्या है, तुम्हें जिस दिन से देखा है,
मेरी नजरों में दुनिया भर हसीं मालूम होती है।
(5)
न देखने की तरह हमने जिन्दगी देखी,
चिराग बुझने लगा जब तो रौशनी देखी।
1.बदस्तूर - पहले की तरह, यथावत, यथापूर्व