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सपना / बिंदु कुमारी
Kavita Kosh से
सपना जे काल तांय हम्मेॅ बुनलेॅ छेलियै
ऊ आय तांय हमरोॅ आपनोॅ नै हुवेॅ सकलै।
आय जबेॅ हम्मेॅ सपना बुनबोॅ छोड़ी देलियै
तेॅ। कालकोॅ ऊ सपना हमरोॅ मुट्ठी मेॅ आबी गेलोॅ छै।
हम्मेॅ राधा बनी के जे पियार पैलियै,
रूक्मिणी बनी नै पाबेॅ पारतियाँ।
रूक्मिणी तोरोॅ पियार रहलौं घरोॅ के अंदर
आरो राधा के पियार
सुगन्ध बनी गमकलै शहर-शहर।