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सफ़ेद रंग / बुद्धिलाल पाल
Kavita Kosh से
अक्सर एक पंछी
हौले से उतर आता है
मेरे कंधे पर
और मैं सम्भावनाओं से
घिर जाता हूँ
चल रही हवाएँ बहुत तेज़
कभी पूरब से, कभी पश्चिम से
कभी उत्तर से, कभी दक्षिण से
और मैं डर जाता हूँ
रात में एक रोशनी
तारों के बीच से
गिरती है जंगलों में
और मैं उठाकर ले आता हूँ
मिलते हैं चश्में
रंगो-रंग के बाज़ार में
पर रंग सफ़ेद ही
अच्छा लगता है
यह मेरा मन है