भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
समदर (दोय) / इरशाद अज़ीज़
Kavita Kosh से
रेत रो समदर
अणमावतै सोनै जैड़ो
जुगां सूं राखै आपरै मांय
पाणी रा सैनाण
बिरखा नीं आवै
बादळ हाका कर निसर जावै
फेर भी मुळकतो रैवै
गांवतो रैवै किण मलंग री भांत
जीवण रा गीत।