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सम्प्रदाय / अनिल कुमार सिंह
Kavita Kosh से
वह रास्ता जो दिख रहा है जाता
आगे की ओर आया है
अतीत के उन भग्न खण्डहरों से
जो स्वप्न थे कभी ।
वीर्य और मदिरा की
ऊभ-चूभ में होते थे
जहाँ पवित्र मन्त्रोच्चार
प्रजा की उत्पादकता या
शायद अपनी भिखारियत और
नपुंसकता की अक्षुण्णता के लिए ।
वह रास्ता जो दिख रहा है जाता
आगे की ओर असल में
कहीं नहीं जाता ।
वह तो ख़त्म हो गया था
जब पहली बार पवित्र ग्रंथों का
पाठ करने के कारण
काट ली गई थी किसी की जीभ
डाल दिया गया था किसी
निर्दोष के कानों में खौलता सीसा और
रजोदर्शन से पहले ही
करवाया था किसी बाप ने
अपनी बेटी का बलात्कार ।