साँचा वार्ता:KKCatMahiya
कविता कोश में माहिया छंद
‘टप्पे’ विधा (माहिया छंद) का प्रचलन कब हुआ इसके बारे में कोई प्रमाणिक समय तय नहीं है । परन्तु एक लोक सूक्ति के अनुसार इस विधा को जनमानस में लोकप्रिय बनाने में दो आदर्श प्रेमियों “बालो-माही” की कथा का ज़िक्र मिलता है । यह प्रेमी जोड़ा टप्पों द्वारा एक दूसरे से वार्तलाप किया करता था । लोक छंद होने के कारण माहिया छंद का आधार लय रहा है परन्तु जब साहित्यिक दृष्टिकोण से माहिया छंद का विवेचन किया गया तब साहित्यकारों ने इस छंद में तीन चरण तय किये । पहले और तीसरे चरण में 12-12 मात्राएँ तथा दूसरे चरण में 10 मात्राएँ होती हैं । पहला और तीसरा चरण तुकान्त होते हैं । कल बाँट के आधार पर इस छंद में, अगर मात्राएँ द्विकल के रूप में हों तब इस छंद में उत्तम गेयता आती है । इसमें सभी चरणों का आरम्भ व अंत गुरु से होता है । इस छंद में पहले और तीसरे चरण की कल बाँट छह द्विकल (2+2+2+2+2+2) होती है तथा दूसरे चरण की कल बाँट में पाँच द्विकल (2+2+2+2+2) होते हैं। इस छंद में (212) रगण स्वीकार्य नहीं है जैसे –मोहिनी, , साधना, सादगी, रीझना, जीतना आदि रगण शब्द माहिया छंद में प्रयोग नहीं होते।
इस छंद में केवल सगण (112) या भगण (211) तथा द्विकल(11) ही मान्य है । अक्सर (121) का क्रम छंद की गति में बाधा उत्पन्न करता है । इस छंद में गेयता का अहम स्थान दिया है । कई बार मात्राभार और कल नियमों का अनुसरण करने पर भी अगर छंद के प्रवाह में अवरोध उत्पन्न हो रहा है तब छंद साहित्यिक दृष्टि से दोषपूर्ण माना जाएगा।