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साथी / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
जो जीवन की विपदाओं को
हँस-हँस झेल लिया करते हैं —
केवल वे मेरे साथी हैं !
शूल-ग्रस्त, बीहड़, पथरीली
शून्य डगर पर बड़ा अँधेरा,
पर, चलते, नयनों में भर जो
जगमग करता नया सबेरा,
- निर्भय बन जीवन और मरण
- से जो खेल किया करते हैं —
- केवल वे मेरे साथी हैं !
जब सिर पर क्रोधित हो-हो कर
गरजा करतीं तेज हवाएँ,
हो जातीं सभी विफल, भावी
की जब आशा-आकांक्षाएँ,
- तब जो उस घोर निराशा में
- पापड़ बेल लिया करते हैं —
- केवल वे मेरे साथी हैं !
बाधाओं से टकरा क्षण-भर
जो सीख न पाये हैं रुकना,
मंज़िल पा जाने से पहले
जो जान न पाये हैं थकना,
- जीवन भर मन की तरुणाई
- से जो मेल किया करते हैं —
- केवल वे मेरे साथी हैं !