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सार-तत्व / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
सकते में क्यों हो,
अरे!
नहीं आ सकते
जब काम
किसी के तुम _
कोई क्यों आये
पास तुम्हारे?
चुप रहो,
सब सहो!
पड़े रहो
मन मारे,
यहाँ-वहाँ!
कोई सुने
तुम्हारे अनुभव,
कोई सुने
तुम्हारी गाथा,
नहीं समय है
पास किसी के!
निष्फल -
ऐसा करना
आस किसी से!
अच्छा हो
सूने कमरे की दीवारों पर
शब्दांकित कर दो,
नाना रंगों से
चित्रांकित कर दो
अपना मन!
शायद, कोई कभी
पढ़े / गुने!
या
किसी रिकॉर्डिंग-डेक में
भर दो
अपनी करुण कहानी
बख़ुद ज़बानी!
शायद, कोई कभी
सुने!
लेकिन
निश्चिन्त रहो _
कहीं न फैले दुर्गन्ध
इसलिए तुरन्त
लोग तुम्हें
गड्ढ़े में गाड़ / दफ़न
या
कर सम्पन्न दहन
विधिवत्
कर देंगे ख़ाक / भस्म
ज़रूर!
विधिवत्
पूरी कर देंगे
आख़िरी रस्म
ज़रूर!