भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सिक्किम / मनीष मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिमालय के ऊँचे अटाले पर
दिपदिपाता गंगटोक,

छांगू में बर्फ की छत पर
सिमराती है धूप,

बौद्ध शान्ति की अनुगूँज में
लिपटा है रूमटेक

उनींदा रंगपोह हड़बड़ाकर उठता है
देखते ही टूरिस्ट टैक्सी ।

तिस्ता बदलती है कई रास्ते
सिक्किम कई चेहरे ।