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सुधि करो कहा करते थे सकरुण ”सुन्दरि! दुख निर्मूल करो / प्रेम नारायण 'पंकिल'
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सुधि करो कहा करते थे सकरुण ”सुन्दरि! दुख निर्मूल करो।
जाते हैं कसक विरह कंटक तुम चूम इन्हें सखि! फूल करो।
दृग सजल दुलार समेट लेट घन अमरायी में दिवस बिता।
प्रियतमे! बहाता रहता हूँ विरही नयनों से मैं सरिता।
सखि! इस निकुंज से उस निकुंज में तेरा पथ हेरा करता।
प्रिय-मिलन-मनोरथ-मधुमय-क्षणिका की माला फेरा करता। “
आ मिलो वेणु गोपाल! विकल बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥91॥