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सुनो! / असंगघोष
Kavita Kosh से
सुनो!
तुम खुद
फेंक आओ
गाँव के बाहर
अपना ढोर-डांगर,
अपनी गंदगी,
अपनी पत्तल,
इससे जन्मना पाई
तुम्हारी जात!
कभी छोटी नहीं होगी
जाओ।