सुपुत्र / दिनेश कुमार शुक्ल
चूँकि हमें प्यार करती है धरती
हमें खींचती है अपनी ओर
इसीलिये वज़न है
हमारे शरीर में
अगर उदासीन हो जाय धरती
तो उड़ जायेंगे हम
कटी पतंग की तरह
पता नहीं कहाँ अंतरिक्ष में
वैसे हममें से कुछ हैं
जो माँ के उपकार का बदला
इस तरह चुकाते हैं
इस तरह डालते हैं
सब पर अपना वज़न
कि धरती पर बोझ बन जाते हैं
और बजाय चलने के
कुचलने लग जाते हैं
फिर भी हममें
अधिकाई उनकी है
जो जितना धरती से पाते हैं
उसका कई गुना
वापस लौटाते हैं
जैसे कि वे
जो रिक्शा चलाते हैं
रिक्शे के पैडिल को
इस हुनर और गरिमा से
सौंपते हैं अपना वजन
अपना तन अपना मन
अपना आकार
कि सिर्फ तीन पहिये नहीं
घूमते हैं तीन लोक लगातार
घट-घट में उठती हैं
गति की लहरें अपार
इन्हीं सुपुत्रों के चलते
धरती माँ करती है हमें प्यार।