भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सूरज / सुदर्शन प्रियदर्शिनी
Kavita Kosh से
उस दिन
कोई आया
मेरे आंगन
में ढेर सारा
बुक्का- भर
सूरज का
बिखेर गया ...
मैंने उठा कर
माथे को छुया
और मुहं पर
मल लिया ....!.