सेब / सुरेश सेन निशांत
सेब नहीं चिट्ठी है
पहाड़ों से भेजी है हमने
अपनी कुशलता की
सुदूर बैठे आप
जब भी चखते हैं यह फल
चिड़िया की चहचहाहट
पहाड़ों का संगीत
धरती की ख़ुशी और हमारा प्यार
अनायास ही पहुँच जाता है आप तक
भिगो देता है
ज़िस्म के पोर-पोर।
कहती है इसकी मिठास
बहुत पुरानी और एक-सी है
इस जीवन को ख़ुशनुमा बनाने की
हमारी ललक ।
बहुत पुरानी और एक-सी है
हमारी आँखों में बैठे इस जल में
झिलमिलाती प्यार भरी इच्छाएँ ।
पहाड़ों से हमने
अपने पसीने की स्याही से
ख़ुरदरे हाथों से
लिखी है यह चिट्ठी
कि बहुत पुराने और एक-से हैं
हमारे और आपके दुख
तथा दुश्मनों के चेहरे
बहुत पुरानी और एक-सी है
हमारी खुद्दारी और हठ
धरती के हल की फाल से नहीं
अपने मज़बूत इरादों की नोक से
बनाते हैं हम उर्वरा ।
उकेरे हैं इस चिट्ठी में हमने
धरती के सबसे प्यारे रंग
भरी है सूरज की किरणों की मुस्कान
दुर्गम पहाड़ों से
हर बरस भेजते हैं हम चिट्ठी
संदेशा अपनी कुशलता का
सेब नहीं