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सोंचे के सबाल / रामकृष्ण
Kavita Kosh से
आझ फिन
पछिआरी करेसे
उठलो हे धुआँ -
लाल, पीअर, करिआ
लगऽ हौ
ऊ चकवा, जेकरा-रोज
बइठके पूरुब मुहे
सेंकँ हल कुम्हार
सच्चो के जरित हे,
लाल, सेनुरिआ आउ करिखाही रंग
टपकित हे - गाँव के सिमाना पर।
गाँव के मुखिआजी
ढोबित हथ
थरमस में, पानी
सात समुन्नर पार के।
उन्हकर कहना हे -
उपास के दिन
देल जाहे दान/खोटा-पिपरी के,
चिन्नी-गुड़।
काहे कि-बादर अगुआएत
बरसत फिन पानी,
मुदा, अखनी का होएत
सोंचे के सबाल हे।