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स्त्री / दीपा मिश्रा

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भ्रूणक रूपमे अबिते
ओ सुनलक
पाठ करू पाठ
बेटा हुए
लिए ई पहीरू जंत्र
कुलक चिराग आओत
ओ सुनलक
सहमल
आ गर्भहिमे
चिचियाअल
हम बेटी छी
बेटा अहाँक
कुलक चिराग बनत
हम दू कुलक दीप छी
जन्मक संगहि
ओकरा बुझा गेलैक
ओकर आवश्यकता
ककरा आ कतेक छैक
ओ हेरा गेल कतौ
बिसरिके अपनाकेँ
सिलेट कगजिया संग
झाँझ छोलनी तक
चिन्ह गेल
ताबत बुझायल
की हम जागल छी ?
हमर मोन, हमर शरीर
हमर इच्छा,हमर पिपासा
कतय गेल
ओ एम्हर ओम्हर तकलक
अपना सन कतेको भेट गेल
कसियाके सब हाथ मिलौलक
आब समय आबि गेल
मोनमे कोनो गाँठ नै राखब
हृदयक अंत:करण संग
सब किछु कहब
सब किछु बाँटब
स्त्री आब स्त्रीक संग चलत
जाहिसँ आबऽ बला समयमे
स्त्री भ्रूण
बस ई सुनय जे
घरक दीप अबय बाली अछि
लिए ई डोरा अहाँ बान्हू