स्वेटर / विनोद शर्मा
दादी अम्मा रो रही है
लाइलाज हो चुकी है उसकी बीमारी
मौत केडर से मुक्त होने के लिए
बुनना चाहती है वह अपने लिए
उम्मीद का स्वेटर जिजीविषा की ऊन से
मगर ऊन है कि उलझती जा रही है
लोग कोशिश कर रहे हैं उसे देने की दिलासा
मगर ऊन है कि उलझती जा रही है
औरत रो रही है उसका पति बेवफा है
तलाक केडर से मुक्त होने के लिए
बुनना चाहती है वह अपने लिए
सौभाग्य का स्वेटर निष्ठा की ऊन से
मगर ऊन है कि उलझती जा रही है
लोग कोशिश कर रहे हैं उसे देने की दिलासा
मगर ऊन है कि उलझती जा रही है
किशोरी रो रही है
उसका पिता दहेज नहीं दे सकता
विवाह की उम्र निकल जाने के डर से
मुक्त होने के लिए बुनना चाहती है वह अपने लिए
सुहाग का स्वेटर प्रार्थना की ऊन से
मगर ऊन है कि उलझती जा रही है
लोग कोशिश कर रहे हैं उसे देने की दिलासा
मगर ऊन है कि उलझती जा रही है
रो रही है नन्ही बच्ची
स्वेटर बुनती हुई उसकी मां
नहीं बुनने देती उसे स्वेटर
वह रो रही है इस बात से बेखबर कि
बुनती रहती है वह निरन्तर
औरों के लिए आनन्द का स्वेटर
नटखटपन की ऊन से
उसकी ऊन कभी नहीं उलझती।