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हंसा / विश्वनाथप्रसाद तिवारी
Kavita Kosh से
तू उस कस्बे की तरह है
जिस पर बर्बरों ने हमला बोल दिया है
तू अपने में सिमट जा
और सिमट जा हंसा
मोटे थुलथुल
माँसखोर गिद्ध
चीख़ रहे हैं तुम्हारे विरुद्ध
तू अकेला
और अकेला हो जा हंसा
अवसरवादी अपराधी
छिपकर आहट ले रहे हैं तुम्हारी
तू ख़ामोश
और ख़ामोश हो जा हंसा
एक दिन बोलेगी
बोलेगी ज़रूर तुम्हारी ख़ामोशी
तू अकेला नहीं जाएगा हंसा ।