भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हत्यारे / नीलेश रघुवंशी
Kavita Kosh से
आएँगे हत्यारे
और ग़ायब हो जाएँगे
पल भर में जुगनू की तरह हँसते-गाते दिन।
चेहरे खुले होंगे हत्यारों के
नहीं होंगे नक़ाब।
तलाशेंगे बच्चे उनमें परिचित चेहरा
औरतें करेंगी कुछ याद करने की कोशिश
पर पहचाने नहीं जाएँगे हत्यारे
हत्यारे सिर्फ़ हत्यारे होंगे।
हत्यारों का निशाना होंगे अब
खुले मैदान और फूलों से भरे बगीचे
ले जाएँगे वे अपने साथ
त्यौहारों से भरे दिन।
होते हैं हत्यारे फ़िराक़ में
नई-नई इच्छाओं नए-नए स्वप्नों के।
एक दिन
सारे उत्सव और त्यौहार
होंगे हत्यारों की झोली में।