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हमारी आँख / प्रेमशंकर शुक्ल
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हमारी आँख
वह बिन्दु है
फूटती हैं जहाँ से
दस दिशाएँ
नाक की सीध में
जा रहे जो मेरे पाँव
वह मेरी आँख के
इंकार की दिशा है
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