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हाइकु 188 / लक्ष्मीनारायण रंगा

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अेक डाळ बैठा
भांत-भांत रा पंछी
कदै ई लड़ै?


न गुटर गूं
नईं गूंजै कू .... कू ... कू ....
है सरणाटो


मा जद धरै
आंगण में चरण
गंगा बै‘जाय