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हाइकु 2 / लक्ष्मीनारायण रंगा
Kavita Kosh से
चमचमावै
लूंठा-ऊंचा सदन
काळे धन सूं
मरूथळ है
कुळतो-सुळतो
मन धरो
थारो परेम
इमरत है म्हारो,
अमर हूं म्हैं