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हाथ / चंद्र रेखा ढडवाल

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उसे पुचकारते
पीठ के अन्दर तक
घूम आते हाथ

अख़बार की आड़ में
उसके हाथ का मनमाना
इस्तेमाल करते हाथ
उसकी स्मृतियों में
कालिख पुते मील के पत्थर
हृदय पर घिर-घिर आते
स्याह साए....
कि अग्नि को साक्षी रख
उसके हाथों को
थामते हाथ

उसके सिर पर आशीर्वाद धरते
उसे कंधों से घेरते हाथ

यहाँ तक कि
उसके पेट से
सड़ा हुआ
बच्चा निकालते हाथ
उसके लिए
बीच के फ़ासलों सरीखे
नकारे जाते
अनदेखे अन्चीन्हें
घिरी बैठी स्याह छाँव के तले के
चबूतरों पर उपजते
रक्तहीन बौने नहीं बनते पाहुन
उसके दृष्टि-पथ में.