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हाय दइया! / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
छुटकू मटक गये,
हाय दइया!
ज़िद्दी हैं पूरे
रूठे तो रूठे,
ग़ुस्से में सारे
खिलौने टूटे।
छुटकू पटक गये,
हाय दइया!
देखो तो कैसी
मुसीबत आयी,
जाने कहाँ से,
चवन्नी पायी!
छुटकू गटक गये
हाय दइया!
झाँक रहे थे
छत से घर में,
पैर जो फिसला,
बीच अधर में—
छुटकू लटक गये
हाय दइया!