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अंगिका मुकरियाँ-5 / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'
Kavita Kosh से
बात-बात में टाँग अड़ाबै,
भीड़-भाड़ मेॅ खूब डराबै।
पहनावा सें लागै सनकी,
की हिय जोकर? नै आतंकी।
बक्सा सें जुड़लोॅ छै बक्सा,
देस भरी के बनलै नक्सा।
खैथौं कोयला बिजली तेल,
की हिय चूल्हा? नै पिया रेल।
सावन में जयकार लगाबै,
भूत बनी केॅ नाचै-गाबै।
काँखी तर झोला केसरिया,
की बम भोला? नै काँवरिया।
बादल बिजली केॅ सनकाबै,
पिफसिर-पिफसिर बरसी चहकाबै।
बेंग कहै साँपों केॅ साबस,
की हिय झरना? नै पिय पावस।
गोदी में चिल्का-बच्चा छै,
देखै में कत्ते अच्छा छै।
कूद-छलांग जनमौती लूर,
की कंगारू? नै पिय लंगूर।
सटकल अँतड़ी सूटकल पेट,
रोजे हियाबै बड़का गेट।
दर-दर घूमै पारा-पारी,
की हिय गिरगिट? नाय भिखारी।