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अक्कड़ बक्कड़ बम्बे बो / मधुसूदन साहा

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तुम भारत के बच्चे हो।
तुमको साहस करना है
दुख धरती का हरना है,
ऊँची-ऊँची चोटी पर
श्रम के बल पर चढ़ना है,
सबको यह बतला दो तुम,
नहीं किसी में कच्चे हो।
जो सोता है, खोता है,
अवसर खोकर रोता है,
वैसा ही काटा करता
जैसा भी जो बोता है,
दुनिया झूठी हो सकती,
तुम सूरज से सच्चे हो।
तुम घर-घर की आशा हो,
मिट्टी की अभिलाषा हो,
जीवन के सच्चे सुख की,
तुम ही तो परिभाषा हो,
खुशियाँ गोद खिलाती हैं,
हर मेधावी बच्चे को।