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अग्नि-चिरन्तन / भारतरत्न भार्गव
Kavita Kosh से
समिधा और शव
दोनों हैं आग्नेय !
कहाँ से धारण करती है
अग्नि अपना रूप
आकाशचारी मेघों के हिरण्याक्षों से
चन्दनवन की अँगुलियों की पोरों से
भभूत रमाए पर्वतों के विपर्यस्त ज्वालामुख से
जड़ से
चेतन से
तृप्ति से अतृप्ति से
दाह से आह से
प्रतिभासित है उसमें वह सब जो चिरन्तन नहीं
अग्नि नहीं है देह
अग्नि है आत्मन् !
जीवन है अग्नि
राख बनाती है समस्त ब्रह्माण्ड को।