भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अजूबा रंग-मंच / उमेश चौहान

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बड़ा अजूबा रंग-मंच है,
बदला-बदला सबका वेश
कोई धरे मुखौटा चोखा
देता हर दर्शक को धोखा
कोई लंबे बाल संवारे
कोई है मुंडवाए केश

कोई बोले रटी-रटाई
कोई कहे ज़िगर की खाई
कोई दुमुही जैसा बोले
कोई बोले केवल श्लेष

कोई डुबो-डुबो कर खाए
कोई झूठी आस बंधाए
कोई भर घड़ियाली आँसू
हमदर्दी से आए पेश

कोई दौलत पर इतराए
कोई सत्ता पा बौराए
कोई सब्ज़-बाग दिखलाता
बेंचे लेता सारा देश