भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अणभूत / कन्हैया लाल सेठिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कर सक्यो है
कुण
क्यां रो ही
निवेड़ो !
कोनी गिणीजै
समदर री लैरां
गिगनार रा तारा
डील री रूंआळी
मन रा विचार,
बांध दी
गिणती री भणाई
दीठ नै
पुदगळ स्यूं
कर दी
पंचभूत
चेतणा नै चेताचूक,
चावै जे
अणभूत्यो
बिरमांड कर लै
दीठ नै मांय
बणज्या सूरदास !