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अतीत बीता / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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अतीत बीता
क्यों रोया जाए सदा
चलो आज तो जी लें
फटा जो दिल
उसको आज सी लें
तुझे देख मुस्काएँ।
53
'मेरे अधर
देखो मद से भरे
मैं रातभर जगी'
ऊषा यूँ बोली-
धो उदासी मन की
हँसो चूम लो मुझे।
54
बिछुड़े साथी,
जिनकी राहें मुड़ी
जहाँ खिली चाँदनी;
साथ वे बचे
ग्रंथि-बन्धन किया
मन से मन सदा।
55
सूखी घास ही
जले पलभर में
ईर्ष्यालु जन -जैसी
बचे रहेंगे
हम ठहरे लौह
पिंघलेंगे,जलें ना।
56
तय किया था
हमने मिलकर
फूलों- सा खिलकर,
जुदा न होंगे
भूल गए हो तुम
राह देखते हम।
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