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अत्र कुशलम तत्रास्तु / नवीन सागर
Kavita Kosh से
सितारे जब अकेले
छूट जाते हैं आसमान के साथ दूर
बत्तियॉं बुझी होती हैं
और दिन भर की नींद हमारी
टूटती है बिस्तरों पर
तो अंधेरे में चुपचाप लगता है मुझे
न जाने कौन लेटी हो तुम!
क्योंकर
बंद दरवाजे के आर-पार रह गए
एक दूसरे में मर कर
मृत्यु के इस पार!
चिट्ठी लिख रहे हैं
मॉं! अत्र कुशलम् तत्रास्तु.
एक आदमी घर आता
घर से चला जाता है
वह रह जाती है अकेली
चीजों के बीच जिनमें
उसकी कीमत लिखी है
भीतर से कोई
दस्तक दे रहा है बाहर कोई
खड़ा है दस्तक दिए
दरवाजा
खुला पड़ा है.
घर गिरा
सुबह से पहले मैंने मलबे का घर
खड़ा किया
मॉं! इस तरह रोज मैंने
तुम्हारे सपनों का घर खड़ा किया.