भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अधिकार हमें / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कब तट से पारावार बँधा
कब किस आँचल से प्यार बँधा
बँध सका समय कब धड़कन से
 कब अम्बर का विस्तार बँधा
हम बाँचेंगे मन के आँचल में
मिला यही अधिकार हमें।

आवेग मिलन का सह लेते सब
कौन बिछोह को सह पाया है
भीगा शब्दों का हर कोना
वह अनचाहा अवसर आया है।
अँजुरी भर फूल आँसुओं के
मिल गए सरस आधार हमें।

कौन यहाँ घर बाँध सका है
कौन सदा रह पाएगा
है कुछ का सफर सवेरे का
कोई शाम हुई तो जाएगा
ले लेना सब सुख के सपने
  दे देना सब अंधकार हमें।

(31-8-1983)