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अनंत काल तक / संतोष श्रीवास्तव

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मखमली हरियाली पर
गुंथी हुई थीं दो परछाईयाँ
धीरे-धीरे गिर रहे थे
फूल शेफाली के
भीनी खुशबू के समंदर में
लरज रहा था मौसम
आशिकी का, दीवानगी का
नदी से उठा
नीली रेशमी धुंध का जाल
लपेट रहा था सतरंगी सपनों को

कि अचानक कहीं से तीर आकर
चीर गया कलेजा
मौसम ने छल लिया
अनुराग को

आह...आर्त्तनाद ...
प्रेम की आहुति
विलाप ...हा... विलाप
कि रच गया महाकाव्य
प्रेम की आहुति से उपजा
नए छंद, नई भावभूमि का
पहला महाकाव्य

आह! विलाप से?
या आहुति से?
कवि की कलम किस से
मुखरित हुई
संशय है... था, रहेगा,
अनंत काल तक