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अन्धकार का बबूल / महेश उपाध्याय
Kavita Kosh से
आस-पास झर गया
गुड़हल का फूल
बींध गया देह
अन्धकार का बबूल
एक भीड़ सन्नाटा
गन्धहीन मन
पानी का डूबा-सा
लग रहा बदन
आँखों में कसक रही
धूल सिर्फ़ धूल ।