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अपराधी देव हुए / कुमार रवींद्र
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अपराधी देव हुए
ऎसे में क्या करें मंदिर की घंटियाँ
उनको तो बजना है
बजती हैं
कई बार
आपा भी तजती हैं
धूप मरी भोर-हुए
कैसे फिर धीर धरें मंदिर की घंटियाँ
भक्तों की श्रद्धा वे
झेल रहीं
आंगन में अप्सराएँ
खेल रहीं
उनके संग राजा भी
देख-देख उन्हें तरें मंदिर की घंटियाँ
एक नहीं
कई लोग भूखे हैं
आँखों के कोये तक
रूखे हैं
दर्द सभी के इतने
किस-किस की पीर हरें मंदिर की घंटियाँ ।