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अबके रविवार / मदन गोपाल लढा
Kavita Kosh से
सोम से शनि तक
सिटी बस के पीछे भागते
सेंसेक्स के उतार-चढ़ाव की
गणित के साथ सर खपाते
क्म्प्यूटर के की-पेड से
उलझते
तंग आ गया हूँ मैं
बुरी तरह,
अबके रविवार
मैं देखना चाहता हूं
पुराने एलबम के फोटोग्राफ़
बाँचना चाहता हूँ
कॉलेज जीवन की डायरी
और तिप्पड़ खाट लगाकर
चांदनी रात में
सुनना चाहता हूं रेडियो।
मूल राजस्थानी से अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा