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अब नैं जरबोॅ / कस्तूरी झा ‘कोकिल’
Kavita Kosh से
बहुत जरै लेॅ, अब नैं जरबोॅ,
चुप्पे राखलेॅ, अब नैं रहबो।
सीना तान सामना करबोॅ,
अब नैं दहेज केॅ सुरसा भरबोॅ।
बाबूजी हो! धीरज राखि होॅ,
बीच-बीच में आबी जैहियॅ!
मैया हमरी मत घबड़ै हियें,
कभी-कभी भैया केॅ भेजिहें।
सोनी, मोनी! राखि हें याद,
कोय नैं सुन तौ कुछ फरियाद।
बाहूँ बल केॅ सदा भरोसा,
कोय नैं करतौ तभी फसाद।
सास-ससुर केॅ खूब समझैबेॅ
सेवा करबै विनती करबै।
तैइयो जों नैं मानथिन बात,
लिखलॅ छन कानबोॅ दिन-रात।
सैयाँ सें कहबै निरभीक,
रजबे चलॅ पुरनके लीक।
नैं तॅ जैबेॅ जेल तुरंत,
उलटे लाठी लगतॅ झीक।
देवरौह ननदी केॅ समझैबै,
नैं मानतै तेॅ खूब धमकैबै।
सबकेॅ सबक सिखैबै बढ़ियाँ,
अब नैं हम कमजोर की कनियाँ।
-09.11.1992