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अभिलाषा / रचना श्रीवास्तव
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					अभिलाषा
अभिलाषा है 
तेरे खुश्क होते शब्दों पे 
बादल रख दूँ 
तुम थोड़ा भीग जाओ 
तुम्हारी वो मेज 
जिस पे मेरे नाम की मीनाकारी थी 
डायरी जिसमें में न जाने कितनी बार 
मैं डूबी उतरी थी 
वो लम्हे फ़र्श पे बिखरा दूँ 
तो शायद 
ख़ामोशियाँ जो आहटों को 
आगोश में भरे तेरे अंदर है 
लफ़्ज़ बन के बह जाएँ 
तुम अपने हिस्से में नहा लो 
मैं आपने में डूब जाऊँ 
 
	
	

