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अभी / रणजीत
Kavita Kosh से
कुत्तों की तरह टुकड़ों पर अभी लड़ता है यह इन्सान
मछली की तरह अपनों को निगलता है यह इन्सान
दुम तो झड़ गई मगर हैवानियत ज्यों की त्यों है
जोंकों की तरह लोगों के लहू पर अभी पलता है यह इन्सान।