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अलम् / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
आहों और कराहों से
नहीं मिटेगी
आहत तन की, आहत मन की पीर !
दृढ़ आक्रोश उगलने से
नहीं कटेगी
हाथों-पैरों से लिपटी ज़ंजीर !
जीवन-रक्त बहाने से
नहीं घटेगी
लहराती लपटों की तासीर !
आओ —
पीड़ा सह लें,
बाधित रह लें,
पल-पल दह लें !
करवट लेगा इतिहास,
इतना रखना विश्वास !