भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
असाधारण / भवानीप्रसाद मिश्र
Kavita Kosh से
तापित को स्निग्ध करे,
प्यासे को चैन दे;
सूखे हुए अधरों को
फिर से जो बैन दे
ऐसा सभी पानी है|
लहरों के आने पर,
काई-सा फटे नहीं;
रोटी के लालच मे
तोते-सा रटे नहीं
प्राणी वही प्राणी है|
लँगड़े को पाँव और
लूले को हाथ दे,
सत की संभार में
मरने तक साथ दे,
बोले तो हमेशा सच,
सच से हटे नहीं;
झूट के डराए से
हरगिज डरे नहीं|
सचमुच वही सच्चा है|
माथे को फूल जैसा
अपने को चढ़ा दे जो;
रूकती-सी दुनिया को
आगे बढा दे जो;
मरना वही अच्छा है|
प्राणी का वैसे और
दुनिया मे टोटा नहीं,
कोई प्राणी बड़ा नहीं
कोई प्राणी छोटा नहीं|