भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अेकायंत रो माहात्म्य / मदन गोपाल लढ़ा
Kavita Kosh से
केई काम अैड़ा हुवै जूण में
जका करीज सकै फगत अेकायंत में।
कुदरत फगत मिनख नैं
सूंपी है आ हेमाणी
सूरज-चंदा रै भाग में ई
कोनी लिख्योड़ो अेकायंत।
जद आदमी हुवै साव अेकलो
अैन नैड़ो आय जावै खुद रै
जद नीं देखतो हुवै कोई बीजो
देख सकै आपरो असल उणियारो
चिड़ी रो ई बोलारो नीं हुवै चौगड़दै
कर सकै बंतळ खुदोखुद सूं।
इण पिरथमी माथै
जकां जीत्यो है जुध खुद सूं
ओळख्यो है सबद रो सांच
तप्या है बै आखी जूण
अेकायंत में।
भीड़ में गम्योड़ा आपां
कठै ओळखां-
अेकायंत रो माहात्म्य!