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आंखें / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
आंखों के कांच
कमजोर हो गए ।
अंतस की आंख
अभी रोशन
तीव्र
देखने
पराए वस्त्रों के पार
कभी शायद
विजयी हो आशा
मन मार !
अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"